Wednesday, November 26, 2008

जाने कौन हो तुम ...

जाने कौन हो तुम
यह
तुम्‍हारी झलक है
या कोई झील है
जिसमें
डूबी जा रही मैं

Friday, November 7, 2008

नादान औरत - आभा सिंह

वह नादान औरत
जो कठघरे रूपी घर में
एक खिलौना बनकर जीती है
जाने कितने बलात्कार झेल
इस घर में वह कठपुतली सी रहती है
एक अदृश्य डोर से बंधी
नचायी जाती है
वही नादान औरत
सुहागन बने रहने के लिए
रखती है निर्जला व्रत
और पति से पिट पिट कर भी
उसे प्यार करती है
बारंबार ठुकरायी जाकर भी
बालकनी में , सीिढयों पर खडी होकर
करती है उसका इंतजार।

क्या यही इंतजार प्यार है...