Tuesday, January 6, 2009

मैं नहीं जानती - आभा सिंह

मैं नहीं जानती
कि इस वक्‍त
क्‍या कर रहे हो तुम
रात के सन्‍नाटे में

तन्‍हा कहां
गिन रहे हो घडि़यां

कि सुबह की लालिमा
फैलने लगती है
कि मोबाइल बजता है

हलो कौन है

कि सुबह की लालिमा में
तुम्‍हारी ध्‍वनि सुनती हूं मैं ...

आज भी इस जिंदगी की चमक में तुम हो........

बेखौफ़ निगाहों से
जब तुम देखते हो मुझे
दिल उदास हो जाता है
बीते हुए क्षण
क्यूँ याद आते है इतना
फिर तड़प जाती हूँ मैं
अपना प्यार पाने के लिये
वो तमाम हरकते
गुदगुदाने लगती है
मेरे अस्मरण को
मेरी चाह थी तुम्हारे संग जीने की
पर समय और मज़बूरी ने
मुझे तोड़ दिया
आज मैं तुम्हें खोकर भी
तुम्हारी जान हूँ
प्यार है मेरी साँसों में
इस जिंदगी की किस्मत
सिर्फ़ आंसू है
हाँ
आज भी इस जिंदगी की
चमक में तुम हो।