क्यों तय करता है इंसान
ऐसी राहें
जिसमें उसे भटकने का डर हो
जवानी के जोश में
अपने होशो हवाश खो बैठता है
और संकल्प लेता है
दुनिया को नयी राह दिखाने का
विधवाओं के सुहाग लौटाने का
सूखते होठों की लाली लाने का
इन्हीं सपनों में वह खो बैठता है
और दुनिया की रंगीनियों में
इस कदर डूब जाता है
कि उसे भी आशा हो जाती है
एक ऐसे नाविक की
जो उसे पार उतार सके।
Friday, May 29, 2009
Friday, May 22, 2009
आज जान पायी हूं
क्या मोह से परे
कोई चीज होती है
संभवत: प्रेम
बहुत कमजोर
ऐसे भी क्षण आए जीवन में
जब लगा
प्रेम मैंने तुमसे किया है
ओह,खंडित मोह,वह प्रेम ही था
आज जान पायी हूं
जीवन की इस मध्यावस्था में।
कोई चीज होती है
संभवत: प्रेम
बहुत कमजोर
ऐसे भी क्षण आए जीवन में
जब लगा
प्रेम मैंने तुमसे किया है
ओह,खंडित मोह,वह प्रेम ही था
आज जान पायी हूं
जीवन की इस मध्यावस्था में।
षडयंत्र - आभा
क्या मैं
टूटती जा रही हूं
वह कैसी दुर्घटना थी
या कि था षडयंत्र
आदमी से पहले
उसका नाम
और फिर उसकी
पूरी दुनिया
छीन लेने का।
टूटती जा रही हूं
वह कैसी दुर्घटना थी
या कि था षडयंत्र
आदमी से पहले
उसका नाम
और फिर उसकी
पूरी दुनिया
छीन लेने का।
Wednesday, May 20, 2009
लडकियां - आभा
घर घर
खेलती हैं लडकियां
पतियों की सलामती के लिए
रखती हैं व्रत
दीवारों पर
रचती हैं साझी
और एक दिन
साझी की तरह लडकियां भी
सिरा दी जाती हैं
नदियों में
आखिर
लडकियां
कब सोचना शुरू करेंगी
अपने बारे में ...
खेलती हैं लडकियां
पतियों की सलामती के लिए
रखती हैं व्रत
दीवारों पर
रचती हैं साझी
और एक दिन
साझी की तरह लडकियां भी
सिरा दी जाती हैं
नदियों में
आखिर
लडकियां
कब सोचना शुरू करेंगी
अपने बारे में ...
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