Sunday, September 20, 2009

जब तुझे लगे

जब
तुझे लगे
दुनिय में सत्‍य
सर्वत्र
हार रहा है
समझो
तेरे भीतर का झूठ
तुझको ही कहीं
मार रहा है।

Saturday, September 19, 2009

वाह रे जिन्‍दगी

तुम्‍हारे होंठों पर खेलती हंसी
गुंजाती है आकाश
सुन रही हूं मैं
हा हा हा ...
कितना प्‍यार है
इन ठहाकों में
जिन्‍हें अब छू नहीं सकती
कितना दर्द है
उन आंखों में
जिसे अब
पी नहीं सकती
वाह रे जिन्‍दगी
तुम्‍हारे रूप हैं कितने ...

यही किस्‍सा मशहूर है

सितारों के बीच से
चुराया था आपको
पर सच तो यही है
कि मिल के बिछडना तो दस्‍तूर है
जिन्‍दगी का
हां यही किस्‍सा मशहूर है जिन्‍दगी का
बीते हुए पल
वापिस नहीं आते
यही सबसे बडा कसूर है जिन्‍दगी का...