Wednesday, December 30, 2009

प्राणों में छिपा प्रेम- टैगोर

प्राणों में छिपा प्रेम
कितना पवित्र होता है
हृदय के अंधकार में
माणिक्‍य के समान
जलता हुआ
किंतु
प्रकाश में वह
कलंक के समान
दिखाई देता है...

Wednesday, December 16, 2009

सच्‍चा सुख कुछ प्राप्‍त करने में नहीं देने में है

जिस काम को करने में हमें संतुष्‍टी और आनंद मिले वही सुख है। हरेक के लिए सुख की परिभाषा अलग अलग होती है। किसी को मिहनत करने में सुख मिलता है तो किसी को धन कमाने में तो किसी को मौज मजा करने में। किसी को धार्मिक क्रिया कलापों में आनंद मिलता है।
पर ये सारे सुख कुछ समय के होते हैं। और आदमी एक काम के बाद सुख के लिए दूसरे के पीछे भागता है।
सोचा जाए तो सच्‍चा सुख कुछ प्राप्‍त करने में नहीं देने में है। किसी का काम बढकर करने में है। जिस व्‍यक्ति में दया, करूणा आदि के गुण निहित हैं वह परोपकारी मनुष्‍य ही सुखी है। मनुष्‍य एक सामाजिक प्राणी है और सहायोग उसके जीवन का एक महत्‍वपूर्ण अंग है। हर आदमी को हमेशा एक दूसरे के सहयोग की आवश्‍यकता होती है और इस सहयोग के आदान प्रदान में ही सच्‍चा सुख है।

Thursday, December 10, 2009

सौंदर्य

खुद को
अंधेरे में रखकर भी
क्‍या देखा जा सकता है
सौंदर्य
उजाले का...