Tuesday, December 30, 2008

मेरे आंसू........आभा सिंह

कभी कभी
ऐसा क्यों लगता है
कि सबकुछ निरर्थक है
कि तमाम घरों में
दुखों के अटूट रिश्ते
पनपते हैं
जहां मकडी भी
अपना जाला नहीं बना पाती
ये संबंध हैं या धोखे की टाट
अपने इर्द गिर्द घेरा बनाए
चेहरों से डर जाती हूं
और होता है
कि किसी समंदर में छलांग लगा दूं।

5 comments:

Ashutosh saraswat said...

अच्छा लगा

Vinay said...

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ

महेन्द्र मिश्र said...

नववर्ष की ढेरो शुभकामनाये और बधाइयाँ स्वीकार करे . आपके परिवार में सुख सम्रद्धि आये और आपका जीवन वैभवपूर्ण रहे . मंगल कामनाओ के साथ .धन्यवाद.

"अर्श" said...

बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई साथ में आपको और आपके पुरे परिवार को नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
साल के आखिरी ग़ज़ल पे आपकी दाद चाहूँगा अगर पसंद आए ...

नीरज गोस्वामी said...

नव वर्ष की आप और आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएं....
नीरज