कभी कभी
ऐसा क्यों लगता है
कि सबकुछ निरर्थक है
कि तमाम घरों में
दुखों के अटूट रिश्ते
पनपते हैं
जहां मकडी भी
अपना जाला नहीं बना पाती
ये संबंध हैं या धोखे की टाट
अपने इर्द गिर्द घेरा बनाए
चेहरों से डर जाती हूं
और होता है
कि किसी समंदर में छलांग लगा दूं।
Tuesday, December 30, 2008
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5 comments:
अच्छा लगा
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
नववर्ष की ढेरो शुभकामनाये और बधाइयाँ स्वीकार करे . आपके परिवार में सुख सम्रद्धि आये और आपका जीवन वैभवपूर्ण रहे . मंगल कामनाओ के साथ .धन्यवाद.
बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई साथ में आपको और आपके पुरे परिवार को नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
साल के आखिरी ग़ज़ल पे आपकी दाद चाहूँगा अगर पसंद आए ...
नव वर्ष की आप और आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएं....
नीरज
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