तुम्हारे होंठों पर खेलती हंसी
गुंजाती है आकाश
सुन रही हूं मैं
हा हा हा ...
कितना प्यार है
इन ठहाकों में
जिन्हें अब छू नहीं सकती
कितना दर्द है
उन आंखों में
जिसे अब
पी नहीं सकती
वाह रे जिन्दगी
तुम्हारे रूप हैं कितने ...
Saturday, September 19, 2009
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