Wednesday, December 30, 2009

प्राणों में छिपा प्रेम- टैगोर

प्राणों में छिपा प्रेम
कितना पवित्र होता है
हृदय के अंधकार में
माणिक्‍य के समान
जलता हुआ
किंतु
प्रकाश में वह
कलंक के समान
दिखाई देता है...

3 comments:

Himanshu Pandey said...

बेहद खूबसूरत । आभार ।

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!!


यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

Chandan Kumar Jha said...

बहुत दर्द है इस रचना में