Thursday, September 4, 2008

एक दिन उसने मेरा नाम पूछा ...

रात के आठ बजे हम पढाई के लिए बैठते थे और ग्‍यारह तक पढते थे। पर फिर अगली सुबह हमें अपनी सहेलियों से मिलने का इंतजार रहता था। यह सिलसिला चलता रहा। पढाई डांट हंसी मजाक गप्‍प के साथ दिन बीतते गये। इस दौरान स्‍कूल के रास्‍ते में मेरा ध्‍यान एक लडके ने खींचना शुरू किया। उसका नाम शशि था। वह लंबा गोरा और सुशील सा लडका था। उसकी शक्‍ल जयाप्रदा से मिलती थी। वह रोज मुझे बस में मिलता था। वह जब भी मुझे देखता हंसता और हाथ हिलाता। दो तीन दिन तक वह मेरा पीछा करता रहा।
एक दिन उसने मेरा नाम पूछा और कि कहां पढती हो ...। मैंने बताया कि डीएवी गर्ल्‍स हाई स्‍कूल। फिर उसने मेरी पढाई व घर का पता आदि पूछा। पहले मुझे उसके पूछने से बहुत डर लगा। मैंने पूछा कि आप यह सब क्‍यों पूछ रहे हैं तो उसने कहा कि तुम बहुत अच्‍छी लडकी हो। डर से मैंने उसे घर का पता नहीं बताया कि वह घर पर ना आ धमके। पर वह हमारा पीछा करता रहा और धीरे धीरे वह मुझे अच्‍छा लगने लगा।
तब मैंने अपने दोस्‍तों को सारी कहानी खुशी खुशी बताई। वे खुश हुईं और उन्‍होंने उसका पता बताया कि वह हमारे घरों के निकट रहता है। तब मैं अपने दोस्‍त के घर ज्‍यादा आने जाने लगी। वैसे बस में वह अक्‍सर मिल जाया करता था। धीरे धीरे मैं उसे अपना सबसे अच्‍छा दोस्‍त मानने लगी। अब मैं अपने दोस्‍तों से उसकी कम चर्चा करती थी और मन ही मन उसे गुणती रहती थी।
शशि का हमारे एक रिश्‍तेदार के घर आना जाना था। एक दिन जब मैं उनके घर गयी तो उससे वहां मुलाकात हो गई। वहीं उसकी मां भी थी। मैं भी अपनी मां के साथ थी। मुझे डर सा लगा कि क्‍या किया जाए , उससे कैसे बात करें...। तब मुझे लगा कि रिश्‍तेदार के यहां जाने आने से शायद उससे मुलाकात हो और कुछ बातें हों सकें। पर यह मुमकिन ना हुआ।
अब पढाई लिखाई में मेरा मन नहीं लगता था हर समय उसकी शक्‍ल आंखों के सामने घूमती रहती और उसका हिलता हाथ दिखता रहता। हम अब एक दूसरे को पत्र भी लिखने लगे थे। स्‍कूल में टिफिन के समय का उपयोग हम उसे पत्र लिखने में करते थे और टिफिन भी नहीं खा पाती थी और उसे लिए घर आजाती थी। तो मां पूछती कि टिफिन क्‍यों बचा है तो मैं बताती कि बहुत लिखना पडता है तो समय नहीं मिलता है, यह सुनकर मां बहुत खुश होती।
उस साल मैथ में मुझे बहुत कम नंबर आए। इसी दौरान मेरा एक पत्र शशि की मां के हाथ लगा और वह उसे मेरे रिश्‍तेदार के घर पहुंचा आई। जहां पत्र मेरे घर आ पहुंचा। फिर हमसे पूछ ताछ शुरू हुई। मैथ में मैं फेल हो चुकी थी। तो उस पत्र के मिलने के बाद मेरे पापा ने मेरी बहुत पिटाई की। और उन्‍होंने मेरा स्‍कूल आना जाना छुडवा दिया। अब मैं बहुत रोती परेशान होती। मुझे लगाता कि उसे खोजकर पूछूं कि क्‍या वह मेरा पत्र ठीक से नहीं रख सकता था। पढकर उसे फाड ही देता तो अच्‍छा रहता। पर वह नहीं मिला। इस बीच उसने गाडी चलानी सीख ली थी। एक दिन वह शाम में मेरे घर के सामने से मिनी बस लेकर गुजरा। मैं दरवाजे पर खड़ी थी। उसे देखकर मैं दंग रह गयी। मुझे लगा कि उसे रोककर बात करूं। पर यह असंभव था। जिंदगी चलती रही इसी तरह घिसती पिटती। अब सहेलियां भी छूट चुकीं थीं और पढाई भी।

7 comments:

Unknown said...

bahut accha laga aap ye khani padh k..

Udan Tashtari said...

बहुत सही, नियमित लिखिये.

Abhishek Ojha said...

ये शशि प्रिया और शाही का नाता है क्या? आगे लिखिए तो थोड़ा साफ़ हो !

मिथिलेश श्रीवास्तव said...

अरे आगे क्या हुआ ?...उत्सुकता बढ़ा दी आपने तो...

Anonymous said...

jari rakhiye achchha lag raha hai.

Anonymous said...

unda aaur rochak ...........kya baat hai........khalid a khan

Anonymous said...

आपने उत्सुकता बढा दी हमारी...