Friday, September 5, 2008

आज भी उस रिश्‍तेदार से मुझे घृणा है जिसके चलते मेरी पढाई छूट गयी ...

उस घटना के अब बीस इक्‍कीस साल हो गए पर आज भी जब वह रिश्‍तेदार मिलता है तो मेरे मन में बदले की भावना जाग जाती है। पर कहते हैं कि जस करनी तस भोग विलासा, कि जो दूसरे के साथ गलत करता है उसे उसके किए की सजा मिल जाती है। आज उन्‍हें जो सजा मिली वह देखकर मुझे दुख ही होता है। उनकी चारों संतानेां ने प्रेम विवाह किया। जिसमें उनकी बडी बेटी चंदा जो मेरी दोस्‍त व छोटी बहन थी , ने घर से भाग कर विवाह किया। विवाह के पहले ही वह प्रिगनेंट थी और मजबूरी में उसे शादी करनी पडी। बाद में पता चला कि उस लडके को नशे की आदत थी जिससे वह बराबर बीमार पडता रहा और आगे उसका लीवर खराब हो गया और चंदा के दुखों का अंत नहीं था और शादी के तीसरे साल उसकी मौत हो गयी। उसे लीवर कैंसर हो चुका था।
जबकि मैंने अभी मात्र चीजों को समझना शुरू किया था पर उस बेवकूफ के चलते मेरी पढार्इ छुडा दी गयी जिसका नतीजा मैं जिंदगी भर भोगती रही। आज मुझे वह पत्र लिखना एक अपराध सा लगता है। खैर मैं घर से ही पढती रही। मुझे मैट्रिक में प्रथम श्रेणी आई थी। पर मुझे आगे पढने दिया गया इसके मूल में माता पिता के मन में घुसा वह डर था जो उस पत्र के जाहिर होने के चलते इस रूप में सामने आया था। अब घर में शादी की बात चलने लगी जबकि मैं पढना चाहती थी। तब मैंने सोचा कि क्‍या लडकी को बस काम चलाने भर इसलिए पढाया जाता है कि उसकी शादी की जा सके। पढाई छुडवाने के चलते अब मुझे पढने से चिढ सी हो गयी है। किताब में अक्षर देखते ही मेरे सिर में दर्द होने लगता है। जबकि मेरे पति हमेशा पढने की जिद करते रहते हैं।
अब घर में हमेशा लडके की चर्चा होती थी जिससे मुझे चिढ सी होती थी। ऐसा लगता कि शादी के बाद लडकी को किसी और के घर चूल्‍हा चक्‍की में लगाना कहां का न्‍याय है। मेरे पापा और चाचा अब रोज लडका खोजने जाते और निराश होकर आते तो मेरे भाग्‍य को कोसते और हर जगह मेरी पढाई की बात‍ उठती और कम पढी लिखी होने की बात पर शादी टूट जाती थी। इससे मां बाप परेशान हो जाते और मुझे जली कटी सुनाते थे। पर मेरे वश में कुछ नहीं था। मुझे लगता कि ऐसा क्‍या करूं कि घरवाले खुश रहें और मैं भी खुश रहूं।
जब भी मेरे पापा लडकी देखकर आते तो मुझे लगता कि आज अच्‍छी खबर आएगी हालांकि शादी मैं चाहती नहीं थी कहीं से। पर मां बाप के चेहरे पर खुशी देखने के लिहाज से लगता कि जल्‍दी कोई लडका पसंद कर लेता कि यह तमाशा खत्‍म होता। तब एक दिन मेरे चाचा जी ने एक लडका देखा जो धनबाद का था। शादी की बात पक्‍की हो चुकी थी। लडके वाले की फरमाईशें पूरी हो चुकी थीं। अब लडकी देखने की बात बाकी थी। इसके लिए मेरा पूरा परिवार चाचा जी के यहां चला आया। वहीं मुझे दिखाया जाना था। सारी तैयारी हो चुकी थी। उनके स्‍वागत व विदाई का सारा प्रबंध था। चाचा के घर मैं पहले भी जाती थी। वहीं पडोस में मेरी दोस्‍ती एक सरिता नाम की स्‍त्री से हो गयी थी। वह मुझे बहुत मानती थी। उसी ने मुझे तैयार किया था सजा कर।
जब मैं तैयार होकर मैं बैठी थी और लडके के आने का समय हुआ तो वे आए ही नहीं। इंतजार का समय बीतता गया। मेरे मन में एक अजीब सी सनसनाहट छाई थी पता नहीं अब क्‍या होगा...। क्‍या फिर मेरे पापा उदास हो जाएंगे और टूट जाएंगे। बादमें फोन करने पर पता चला कि वे मुझे देखने नहीं आएंगे। दरअसल इस बीच उनकी मांग बढ गयी थी वे पचास हजार रूपये और एक कलर टीवी और मांग रहे थे, इसी बात पर उन्‍होंने लडकी देखना स्‍थगित कर दिया। मेरी मां जिद पर थी कि किसी तरह पैसा जुटाकर यह शादी करादी जाए पर पापा नही माने। उनका कहना था कि पहले कुछ औरमांगा मंडप में कुछ और मांग कर देंगे और घर जाकर मेरी लडकी के साथ क्‍या होगा यह सोच कर पापा ने मां की बात नहीं मानी क्‍येां कि उनके पास उस समय उतना पैसा नहीं था। इस तरह नेवी में काम करने वालावह लडका भी हाथ से चलागया।

7 comments:

Rakesh Kaushik said...

aap ne ek ladki ki shadi se pehle ki avstha or uske ghar ka sajeev chitran kiya hai.

bahut achcha likha hai aap ne. lekh me bandhkar rakhne ki akshamta hai

Rakesh Kaushik

L.Goswami said...

पढ़ रहें हैं आगे लिखिए ..इंतिज़ार है

श्रीकांत पाराशर said...

Aapne yatharth chitran kiya hai. aisa hota hai. ye sthitiyan kabhi to sudhrengi. hamare saath jo hua vah ho gaya. hum is dasha ko sudharne ke liye kya kuchh kar sakte hain, agar han, to vah prayas karne chahiyen.Ladkiyon ke is dard ko samjhne ki jarurat hai.

डॉ .अनुराग said...

सच लिखना भी कितना मुश्किल होता है ...लिखते वक़्त भी आपको कष्ट हो रहा होगा.....पर मन में नफरत मत रखिये...ये आपकी उर्जा को नष्ट करेगी....

संगीता पुरी said...

क्या सही में ऐसा हुआ था ? यदि हुआ था तो मुझे आपसे सहानुभूति है। पुरानी बातों को भूलने में ही अच्छाई है।

Udan Tashtari said...

अच्छा ही हुआ. लालची लोगों की लालच का कोई अंत नहीं होता. आपके पापा का निर्णय बिल्कुल उचित था. बढ़िया लेखन!! नियमित लिखें.

------------------


निवेदन

आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.

ऐसा ही सब चाहते हैं.

कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.

हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.

-समीर लाल
-उड़न तश्तरी

Safat Alam Taimi said...

ईश्वर की आप पर यदा और कृपा हो, अपना विचार ऊंचा रखें अवश्य सफलता की शिखर पर पहुंचेंगे