उसके पैरों में घिरनी लगी रहती है
अंतरनिहित बेचैनी में बदहवास
भागती फिरती है वह
इस जहां से उस जहां तक
सितारे
आ आकर मरते रहते हैं
उसके भीतर
जिन सितारों को
अपना रक्त पिलाकर पालती है वह
वे दम तोड़ देते हैं एक दिन
उसकी ही बाहों में
अपनी चमक उसे सौंपते हुए
यह चमक
कतरती रहती है
उसका अंतरतम
सितारों की अतृप्त अकांक्षाएं
हर पल उसे बेचैन रखती हैं
वह सोचती है कि
अब किसी सितारे को
मरने नहीं देगी अपनी पनाह में
और रक्तस्विनी बन हरपल
उनके लिए प्रस्तुत
भागती रहती है वह
इस जहां से उस जहां तक ...
Monday, March 23, 2009
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1 comment:
bahut khoob, dhanywad
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