Friday, May 22, 2009

आज जान पायी हूं

क्‍या मोह से परे
कोई चीज होती है
संभवत: प्रेम

बहुत कमजोर
ऐसे भी क्षण आए जीवन में
जब लगा
प्रेम मैंने तुमसे किया है

ओह,खंडित मोह,वह प्रेम ही था
आज जान पायी हूं
जीवन की इस मध्‍यावस्‍था में।

3 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत ही सुंदर पंक्ति,
अत्यंत भावपूर्ण अभिव्यक्ति,
मेरी पसंद बन गया
और आपको धन्यवाद गया.

श्यामल सुमन said...

खुद अक्स ही उलट जाये तो क्या दोष है मेरा।
मैं वक्त का आईना हूँ सच बोल रहा हूँ।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.

Udan Tashtari said...

ओह,खंडित मोह,वह प्रेम ही था
आज जान पायी हूं
जीवन की इस मध्‍यावस्‍था में।

--बहुत सुन्दर भाव!!