Friday, May 29, 2009

आदर्श

क्‍यों तय करता है इंसान
ऐसी राहें
जिसमें उसे भटकने का डर हो
जवानी के जोश में
अपने होशो हवाश खो बैठता है
और संकल्‍प लेता है
दुनिया को नयी राह दिखाने का
विधवाओं के सुहाग लौटाने का
सूखते होठों की लाली लाने का
इन्‍हीं सपनों में वह खो बैठता है
और दुनिया की रंगीनियों में
इस कदर डूब जाता है
कि उसे भी आशा हो जाती है
एक ऐसे नाविक की
जो उसे पार उतार सके।

4 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया भावपूर्ण.

श्यामल सुमन said...

हकीकत को बयां करने की अच्छी कोशिश।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

M Verma said...

सुन्दर अभिव्यक्ति --- विसंगतिया हर ओर है.
बधाई

Rajesh Sharma said...

kuch log swabhav se mahaan hote hain, jaise ki tum.....rajesh